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बोलती हुई औरतें, कितनी खटकती हैं ना.. | bolatee huee auraten, kitanee khatakatee hain na.. | words of samarpan

 


बोलती हुई औरतें,
कितनी खटकती हैं ना..
सवालों के तीखे जवाब देती
बदले में नुकीले सवाल पूछती
कितनी चुभती है ना...
लाज स्त्री का गहना है
इस आदर्श वाक्य का मुंह चिढ़ाती
तमाम खोखले आदर्शों को,
अपनी स्कूटी के पीछे बांधकर खींचती
घूरती हुई नज़रों से नज़रें भिड़ाती
कितनी बुरी लगती हैं ना औरतें
सदियों से हमें आदत है
झुकी गर्दन की जिसे
याद हो जाए पैरों की हर एक रेखा..
जिसका सर हिले हमेशा सहमति में...
जिसके फैसले के अधिकार की सीमा
सीमित हो महज़ रसोई तक...
अब,
जब पूजे जाना नकार कर
वो तलाश रही हैं अपना वजूद
तो न जाने क्यों हमें
खटक रहा है उनका आत्मविश्वास
खोजने लगे हैं हम तरीके
उसे ध्वस्त करने के...
हर कामयाब स्त्री हमारे लिए,
समझौते के बिस्तर से आये
व्यभिचार का प्रतीक है..!
हर आधुनिक महिला चरित्रहीन
और हर अभिनेत्री वेश्या...
जीन्स पहनना चालू होने की निशानी है
और शॉर्ट्स वालियों के तो
रेट्स भी पता हैं हमको...
सवाल पूछती औरतों को
चुप कराने का
नहीं कोई बेहतर उपाय कि
घसीटो उन्हें चरित्र की अदालत में
जहाँ सारे नियम, सभी क़ानून
है पुरुषों के, पुरूषों द्वारा..
जिनकी आड़ में छुप जाएंगी
वो तमाम ऐयारियाँ, नाइन्साफ़ीयां
जो हमेशा हक़ रही हैं मर्दों का
बोलती हुई औरतों !!
अब जब सीख ही रही हो बोलना
तो रुकना नहीं कभी..
पड़े जरुरत तो चीखना भी
लेकिन खामोश न होना..
तुम्हारी चुप्पी ही,
सबसे बड़ी दुश्मन रही है तुम्हारी...
बोलती हुई औरतों, बोलती रहना तुम !!!