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जन्मदिन पर मुक्तिबोध का स्मरण | Remembrance of Muktibodh on birthday | words of samarpan


जन्मदिन पर मुक्तिबोध का स्मरण 
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गजानन माधव 'मुक्तिबोध' की प्रसिद्धि प्रगतिशील कवि के रूप में है। मुक्तिबोध हिन्दी साहित्य की स्वातंत्र्योत्तर प्रगतिशील काव्यधारा के शीर्ष व्यक्तित्व थे। हिन्दी साहित्य में सर्वाधिक चर्चा के केन्द्र में रहने वाले मुक्तिबोध कहानीकार भी थे और समीक्षक भी। उन्हें प्रगतिशील कविता और नयी कविता के बीच का एक सेतु भी माना जाता है।

मुक्तिबोध मूलत: कवि हैं। उनकी आलोचना उनके कवि व्यक्तित्व से ही नि:सृत और परिभाषित है। वही उसकी शक्ति और सीमा है। उन्होंने एक ओर प्रगतिवाद के कठमुल्लेपन को उभार कर सामने रखा, दूसरी ओर नयी कविता की ह्रासोन्मुखी प्रवृत्तियों का पर्दाफ़ाश किया। यहाँ उनकी आलोचना दृष्टि का पैनापन और मौलिकता असन्दिग्ध है। उनकी सैद्धान्तिक और व्यावहारिक समीक्षा में तेजस्विता है। जयशंकर प्रसाद, शमशेर, कुँवरनारायण जैसे कवियों की उन्होंने जो आलोचना की है, उसमें पर्याप्त विचारोत्तेजकता है और विरोधी दृष्टि रखने वाले भी उनसे बहुत कुछ सीख सकते हैं।

काव्य की सृजन प्रक्रिया पर उनका निबन्ध महत्त्वपूर्ण है। ख़ासकर फैण्टेसी का जैसा विवेचन उन्होंने किया है, वह अत्यन्त गहन और तात्विक है। उन्होंने नयी कविता का अपना शास्त्र ही गढ़ डाला है। पर वे निरे शास्त्रीय आलोचक नहीं हैं। उनकी कविता की ही तरह उनकी आलोचना में भी वही चरमता है, ईमान और अनुभव की वही पारदर्शिता, जो प्रथम श्रेणी के लेखकों में पाई जाती है। उन्होंने अपनी आलोचना द्वारा ऐसे अनेक तथ्यों को उद्घाटित किया है, जिन पर साधारणत: ध्यान नहीं दिया जाता रहा। 'जड़ीभूत सौन्दर्याभरुचि' तथा 'व्यक्ति के अन्त:करण के संस्कार में उसके परिवार का योगदान' उदाहरण के रूप में गिनाए जा सकते हैं।

मुक्तिबोध की प्रसिद्ध रचनाएँ
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'चाँद का मुँह टेढ़ा है'- कविता संग्रह: 196
'एक साहित्यिक की डायरी'- 1965 [3]
'कामायनी:पुनर्विचार' (आलोचना: 1952)
'नयी कविता का आत्म-संघर्ष तथा अन्य निबन्ध' (1968)
'काठ का सपना' (कहानी संग्रह 1966)।

(जन्म: 13 नवंबर 1917 - मृत्यु: 11 सितंबर 1964)

Gopal Rathi