आज का विचार
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पात्रं न तापयति नैव मलं प्रसूते स्नेहं न संहरति नैव गुणान् क्षिणोति ।
द्रव्यावसानसमये चलतां न धत्ते सत्पुत्र एष कुलसद्मनि कोऽपि दीपः ॥
कुलवान के घर में प्रकट हुआ पुत्र तो एक विलक्षण दिये जैसा है । दिया तो पात्र को तपाता है, पर पुत्र कुल को नहीं तपाता; दिया मेश बनाता है पर पुत्र मैल नहीं निकालता; दीपक तेल पी जाता है पर पुत्र स्नेह का नाश नहीं करता; #दिया गुण (वाट) को कम करता है पर पुत्र गुण कम नहीं करता; दिया सामग्री कम होने पर बूझ जाता है पर पुत्र द्रव्य कम होने पर कुल का त्याग नहीं करता
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